गोपियों का निष्काम प्रेम | श्रीकृष्ण भक्ति की सबसे सुंदर मिसाल
गोपियों का निष्काम प्रेम और श्रीकृष्ण की भक्ति कथा पढ़ें। जानें प्रेम का असली अर्थ और गोपियों की भक्ति की अनमोल मिसाल।
❤️ गोपियों का निष्काम प्रेम – श्रीकृष्ण भक्ति की सबसे सुंदर मिसाल ❤️
प्रेम तभी सार्थक होता है जब उसमें कोई स्वार्थ न हो, बस समर्पण हो, बस श्रद्धा हो। गोपियों का प्रेम यही सिखाता है। उन्होंने कभी श्रीकृष्ण से कुछ माँगा नहीं, बस प्रेम किया और उसी प्रेम के आकर्षण में कन्हैया स्वयं गोकुल की गलियों में खिंचे चले आते थे।
गोपियों का प्रेम संसार के हर प्रेम से ऊपर है। वो प्रेम कृत्रिम नहीं, निष्काम था, जिसमें कोई शर्त नहीं थी — सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण का नाम और स्वरूप ही जीवन का अंतिम लक्ष्य था।
इसीलिए तो संत कहते हैं —
> सबसे ऊँची प्रेम सगाई,
दुर्योधन को मेवा त्यागे, साग विदुर घर खाई।
झूठे फल शबरी के खाये, बहु विधि प्रेम लगाई।।
श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वीकार किया —
> "मुझे गोकुल में गोपियों संग जो प्रेम और आनंद मिला, वह द्वारिका में नहीं मिला।"
यह भक्ति, यह प्रेम, मनुष्य को भगवान से जोड़ देता है। गोपियों की तरह यदि हम भी अपने मन से स्वार्थ मिटाकर प्रेम करें, तो ईश्वर स्वयं हमारे जीवन में प्रवेश
कर जाते हैं।
गोपियों का प्रेम ही सच्चा प्रेम है — जिसमें न कोई अपेक्षा, न कोई लालच — बस संपूर्ण समर्पण।
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🌸 सीताराम सीताराम 🙏
जय श्री राधे कृष्ण ❤️
हर हर महादेव 🚩